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बाल मज़दूरी छीने बचपन -लेखनी प्रतियोगिता -22-Jun-2022


यह धन की बढ़ती हुई चाह है
या मज़बूरी की दुर्लभ राह है
दुविधाओं की नहीं कोई थाह है
 मन से निकलती दर्द भरी आह है।

 क्यों बढ़ती जा रही बाल मजदूरी
 बच्चों का कार्य करना हुआ जरूरी
 क्यों खेलकूद बन गया अब  सपना
 मजदूर बच्चों का छिनता बचपन।

 जाना चाहे वे भी पढ़ने को स्कूल
 विवशता में सारी मस्ती जाते भूल
 खेल-खिलौने हाथी-घोड़े हुए क्रूर 
 गरीबी क्यों करती सपनों को चूर।

 लद जाती जो श्रम की भारी गठरी
 दिन रात पसीना बहा भी न उतरी
 बोझ तले दब गयीं खुशियां बेचारी
 छोटी सी उम्र और इतनी जिम्मेदारी।

 देख कर उठता है अंतर्मन दहल
 बर्तन माँजते कोई बच्चा जाए मिल
 जूठे बर्तन भी वह सबके उठाता
 गिरी हुई जूठन साफ करने आता।

 कभी पिता के काम में हाथ बँटाता
 कभी सड़क पर पड़ा कूड़ा उठाता
 कभी कारखानों में पसीना बहाता
 गरीब का बचपन यूँ ही बीत जाता।

 डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नोएडा,उत्तर प्रदेश

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7 Comments

Seema Priyadarshini sahay

23-Jun-2022 10:44 AM

बेहतरीन

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Shrishti pandey

23-Jun-2022 08:01 AM

Nice

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Abhinav ji

23-Jun-2022 07:41 AM

Very nice👍

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